Not known Factual Statements About कोकिला-व्रत-कथा
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करे। साथ ही इस दिन अपने दिन की शुरुआत सूर्य को अर्घ देने के साथ करें।
कोकिला व्रत से जुड़ी कथा का संबंध भगवान शिव एवं माता सती से जुड़ा है। माता सती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए लम्बे समय तक कठोर तपस्या को करके उन्हें पाया था। कोकिला व्रत कथा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है। इस कथा के अनुसार देवी सती ने भगवान को अपने जीवन साथी के रुप में पाया। इस व्रत का प्रारम्भ माता पार्वती के पूर्व जन्म अर्थात सती रुप से है।
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यह व्रत विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य प्रदान करता है।
कोकिला व्रत की कहानी का संबंध शिव पुराण में भी प्राप्त होता है। कथा इस प्रकार है ब्रह्माजी के मानस पुत्र दक्ष के घर देवी सती का जन्म होता है। दक्ष विष्णु का भक्त थे और भगवान शिव से द्वेष रखते थे। जब बात सती के विवाह की होती website है, तब राजा दक्ष कभी भी सती का संबंध भगवान शिव से जोड़ना नहीं चाहते थे। राजा दक्ष के मना करने पर भी सती ने भगवान शिव से विवाह कर लिया था। पुत्री सती के इस कार्य से दक्ष इतना क्रोधित होते हैं कि वह उससे अपने सभी संबंध तोड़ लेते हैं। कुछ समय बाद राजा दक्ष शिवजी का अपमान करने हेतु एक महायज्ञ का आयोजन करते हैं। उसमें दक्ष ने अपनी पुत्री सती और दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था।
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ऐसे में जब देवी सती को इस बात का पता चलता है कि उनके पिता दक्ष ने सभी को बुलाया लेकिन अपनी पुत्री को नहीं। तब सती से यह बात सहन न हो पाई। सती ने शिव से आज्ञा मांगी कि वे भी अपने पिता के यज्ञ में जाना चाहतीं हैं। शिव ने सती से कहा कि बिना बुलाए जाना उचित नहीं होगा, फिर चाहें वह उनके पिता का घर ही क्यों न हो। सती शिव की बात से सहमत नहीं होती हैं और जिद्द करके अपने पिता के यज्ञ में चली जाती हैं।
देवी सती का जन्म राजा दक्ष की बेटी के रुप में होता है। राजा दक्ष को भगवान शिव अत्यधिक अप्रिय थे। राजा दक्ष एक बार यज्ञ का आयोजन करते हैं। इस यज्ञ में वह सभी लोगों को आमंत्रित करते हैं ब्रह्मा, विष्णु व सभी देवी देवताओं को आमंत्रण मिलता है किंतु भगवान शिव को नहीं बुलाया जाता है।
यह व्रत भौम दोष से मुक्ति दिलाने में भी सहायक होता है, जो विवाह में बाधा डालता है।
मंदिर जाकर भगवान शिव का गंगाजल और पंचामृत से अभिषेक करें।
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भगवान शिव की पूजा के लिए सफेद, लाल फूल, बेलपत्र, भांग, धतूरा, दूर्वा, दीपक, धूप और अष्टगंध का इस्तेमाल जरूर करें।
स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य देकर दिन का आरंभ करें।
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